-रचनात्मकता के धनी प्रो. जोशी के नाम एक और नई उपलब्धि
-ललित कला अकादमी नई दिल्ली में एक सितंबर से होगा शो
सीएनई रिपोर्टर, अल्मोड़ा
कला के क्षेत्र में अद्वितीय प्रतिभा के धनी एवं सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय अल्मोड़ा मंें विजुअल आर्ट के प्रोफेसर एवं डीन अकादमिक प्रो. शेखर चंद्र जोशी का ललित कला अकादमी, नई दिल्ली में सोलो शो आयोजित होने जा रहा है। जिसका शुभारंभ पहली सितंबर 2022 को होगा। यह सोलो शो 07 सितंबर 2022 तक जनता के लिए खुलेगा। यह बड़ा आयोजन प्रो. शेखर चंद्र जोशी की उपलब्धि और उनकी रचनात्मकता का परिणाम है।
प्रो. जोशी ने बताया कि इस सोलो शो का उद्घाटन अंतर्राष्ट्रीय स्तर के जाने-माने कलाकार पद्मश्री श्याम शर्मा करेंगे, जिन्होंने इसके लिए अपनी सहमति भेज दी है। इस शो का उद्घाटन 01 सितंबर 2022 की शाम 5 बजे ललित कला अकादमी, 35 फिरोज शाह रोड, नई दिल्ली में गैलरी नंबर 08 में होगा। उन्होंने बताया कि सोलो शो का शीर्षक ‘आर्ट एंड कम्युनिकेशन ऑफ स्पेस (एसीओएस)’ है। इस विषय खासकर मानव, प्रकृति व सामाजिक ताने-बाने पर आधारित है, जिसमें अंतरिक्ष को महत्व दिया गया है। शो में कलाकार की उंगलियों के नाखूनों से निष्पादित पांच दर्जन से अधिक कार्यों को कागज पर दिखाया जाएगा। सोलो शो प्रतिदिन प्रातः 11.00 बजे से सायं 7.00 बजे तक जनता के लिए 07 सितंबर 2022 तक खुला रहेगा।
रचनात्मकता के धनी हैं प्रो. जोशी
यहां उल्लेखनीय है कि कला के क्षेत्र में अद्वितीय प्रतिभा के धनी एवं जाने-माने कलाकार प्रो. शेखर चंद्र जोशी अल्मोड़ा निवासी हैं और वर्तमान में उत्तराखंड के सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय अल्मोड़ा में विजुअल आर्ट के प्रोफेसर और डीन अकादमिक हैं। प्रो. जोशी अपनी अनूठी कला शैली के लिए मशहूर हैं और अपने अनोखे तरीके से काम करते हुए अपनी रचनात्मकता को बरकरार रखने के शौकीन हैं। एक उस मूर्तिकार के तरह, जो अंतरिक्ष में मूर्तिकला बनाने के लिए पत्थर तराशता है या छेनी करता है। इसी तरह प्रो. जोशी अपने नाखूनों और धान के सिक्कों का बिना ब्रश के ही एक उपकरण के रूप में उपयोग करते हैं और एकाग्रता, नियंत्रित कार्यशैली, बेहद सावधानी से अंतरिक्ष में अपनी उंगलियों और नाखूनों के माध्यम से कागज में अकल्पनीय कला उकेरने में माहिर हैं।
लंबे अभ्यास से बनाया नामी
प्रसिद्ध कलाकार प्रो. शेखर चंद्र जोशी का कहना है कि उन्होंने अपनी रचनात्मकता के लिए अंतरिक्ष के भीतर अपनी अवधारणा, भावना, कल्पना, कौशल और नवीनता को स्वतंत्र रूप से व्यक्त किया है। अपने नाखूनों व धान के सिक्कों का बिना ब्रश के ही उपयोग एक उपकरण के रूप में किया है। उन्होंने बताया कि अतिरिक्त बड़े कार्य के लिए कागज को जोड़कर भी कला का प्रदर्शन किया है और एक व्यापक स्थान के लिए उन्होंने अपनी कला को कैनवास पर चिपकाने का आकार भी दिया है। प्रो. जोशी के अनुसार वह व्यापक स्थान हम सभी के लिए मूल्यवान है। हम हमेशा बनाने और संवाद करने के लिए जगह में फिट होने की कोशिश करते हैं। वह कहते हैं कि कला, संचार व अंतरिक्ष की कोई सीमा नहीं है। यह तो कलाकार की पसंद और उसकी तकनीक, माध्यम और अंतरिक्ष में प्रयुक्त सामग्री पर निर्भर करता है। उन्होंने अपनी तकनीक और माध्यम के संबंध में कहा कि विशेष रूप से उनके पास अपने नाखूनों की पकड़ को नुकसान पहुंचाने या कागज को उभारने की सीमा है, जो लंबे अभ्यास का परिणाम है।