सीएनई रिपोर्टर, अल्मोड़ा
अखिल भारतीय किसान सभा से सम्बद्ध उत्तराखंड किसान सभा ने रवाईंकांड की 91वीं वर्षगांठ पर आज शहीदों को याद किया। किसान सभा, अल्मोड़ा ने रंवाई किसान आंदोलन के उपलक्ष्य में एक वर्चुअल बैठक की। जिसमें सन् 1930 के रंवाई किसान विद्रोह पर व्यापक चर्चा करते हुए इससे प्रेरणा लेकर किसान आंदोलन को मजबूती प्रदान करने का संकल्प लिया।
वर्चुअल बैठक में वक्ताओं ने कहा कि रंवाई किसान आंदोलन ने तब टिहरी राजशाही के बर्बर दमनकारी नीतियों को बेनकाब करके दम लिया था। वक्ताओं ने कहा कि पिछली सदी के 20वें से 30वें दशक में देश की जनता ने अंग्रेज़ी हुकूमत के दमनकारी नीतियों के खिलाफ संघर्ष किया और महात्मा गांधी तथा प्रगतिशील ताकतों के नेतृत्व में विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार का आंदोलन ज़ोरों पर रहा। शहीदे आजम भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव आदि क्रान्तिकारियों ने अंग्रेजी हुकुमत का डटकर विरोध किया। जिसका असर टिहरी राजशाही के खिलाफ चले आन्दोलन पर भी देखने को मिला। उन्होंने कहा कि बेगारी प्रथा, अत्यधिक करों के खिलाफ आंदोलन, हक हकूकों के लिए आंदोलन जैसे कई लड़ाईयां प्रमुख रही हैं। वक्ताओं ने कहा कि टिहरी राजशाही के खिलाफ संघर्षरत जनता ने हार नहीं मानी। रंवाई विद्रोह के लगभग 20 साल बाद टिहरी की जनता को राजशाही की गुलामी से मुक्ति मिली।
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वक्ताओं ने कहा कि आज किसान विरोधी तीन कृषि कानून थोपकर तथा मजदूरों के पक्ष में लंबे संघर्षो से हासिल श्रम कानूनों को खत्म किया जा रहा है। चार श्रम संहिताओं को लागू कर दिया गया। जिसके खिलाफ किसान और मजदूर आंदोलनरत हैं। ऐसे में उक्त संघर्षों से प्रेरणा लेकर किसान व मजदूरों के आंदोलन को मजबूती प्रदान करने का संकल्प लेने की जरूरत है। इस मौके पर किसान व मजदूर आंदोलन के शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की गई। बैठक में दिनेश पांडे, डूंगर सिंह, आरसी उपाध्याय, स्वप्निल पांडे, यूसुफ तिवारी, अरुण जोशी, दीपक जोशी, शेर सिंह, नंदबल्लभ, शंकर लाल, सुनीता पांडे, राधा नेगी, मुन्नी प्रसाद के अतिरिक्त अन्य लोगों ने भाग लिया।
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