पीरूल हटाने में जुटा वन महकमा, वनाग्नि सुरक्षा को सबसे प्रभावी कदम
प्यूड़ा अनुभाग में जंगलों से पिरूल की सफाई

सीएनई रिपोर्टर, सुयालबाड़ी। वनाग्नि की संभावित घटनाओं को रोकने के लिए वन महकमा इस साल काफ सजग है। विभाग द्वारा लगातार मुहिम चलाकर जनता को जागरुक किया जा रहा है। बुधवार को गोला वन क्षेत्र के प्यूड़ा अनुभाग में जंगलों से पिरूल की सफाई की गई।

नैनीताल वन प्रभाग अंतर्गत उत्तरी गोला वन क्षेत्र के प्यूड़ा अनुभाग में वनाग्नि हेतु संवेदनशील क्षेत्रों में पिरूल सफाई कार्य किया जा रहा है, ताकि वनाग्नि घटना न हो। वन क्षेत्राधिकारी उत्तरी गोला नथुवाखान प्रमोद कुमार आर्य ने कहा कि वनाग्नि घटना के 3 मुख्य घटक हैं पहला फ्यूल यानी पीरुल या सुखी घास, दूसरा तापमान तथा तीसरा ऑक्सीजन। जिनमें से तापमान और ऑक्सीजन को नियंत्रित नहीं किया जा सकता। सिर्फ फ्यूल यानी पीरुल या सूखी घास का निस्तारण किया जा सकता है, जिस हेतु विभाग पूरे जोरशोर से कार्य कर रहा है।

पेट्रोल से भी ज्यादा खतरनाक है पिरूल !
उल्लेखनीय है कि प्रदेश के पहाड़ी इलाकों में पाए जाने वाले चीड़ वृक्ष की पत्तियों को पिरूल कहा जाता है, जो 20 से 25 सेमी लम्बी और नुकीली होती है। क़ई लोग इसे जंगलों के लिए अभिशाप कहते हैं क्योंकि, यह वनाग्नि में घी तरह काम करती है। माना जाता है कि यह पेट्रोल से भी ज्यादा ज्वलनशील होती है। राज्य सरकार के दिशा निर्देश पर वन विभाग आग पर काबू पाने की कोशिश कर रहें है।