—ग्रीन हिल्स संस्था इस मुहिम में जुटी
सीएनई रिपोर्टर, अल्मोड़ा
Product Development of Scorpion Grass
नेशनल मिशन ऑन हिमालयन स्टडीस के तहत पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार के वित्त पोषण से ग्रीन हिल्स ट्रस्ट द्वारा “उत्तराखंड में जंगली पौधे बिच्छू बूटी की आजीविका संवर्धन की क्षमता की तलाश” का कार्य किया जा रहा है। जिसके तहत संस्था द्वारा बिच्छू घास के उत्पाद विकास के कार्य किए जा रहे हैं।
हैदराबाद स्थित ‘नेशनल कोमोडिटीस मैनेजमेंट सर्विसेज़ लिमिटेड’ एवं गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, पंतनगर का भी इस प्रोजेक्ट में सहयोग लिया जा रहा है। ग्रीन हिल्स ट्रस्ट की सचिव डा. वसुधा पंत प्रोजेक्ट की मुख्य वैज्ञानिक एवं को-ऑर्डिनेटर हैं। उन्हीं की निगरानी में प्रोजेक्ट पर कार्य चल रहा है। प्रोजेक्ट का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य गांवों में जाकर बिच्छू बूटी (जिसे स्थानीय भाषा में सिसूण कहते हैं) की उपयोगिता को बताना और इसके उत्पाद निर्मित कर स्वरोजगार का साधन बनाने के लिए प्रेरित करना है। बिच्छू बूटी से निर्मित खाद्य पदार्थों को राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाना भी लक्ष्य में है।
इसी क्रम में ग्रीन हिल्स की टीम ने जिले के लमगड़ा ब्लाक के ग्राम कुमालसौं में जन-जागरूकता की। वहीं ग्राम प्रधान महेश राम की अध्यक्षता में बैठक कर विस्तृत जानकारी इस संबंध में दी। बैठक में ग्रीन हिल्स की टीम में भूपेंद्र वल्दिया, दीपक जोशी एवं पुष्पा वल्दिया शामिल रहे।
क्या होती है बिच्छू घास, जानिये इसके फायदे (Benefits of scorpion grass:)
वैसे तो यह भारत के विभिन्न राज्यों में मिलती है लेकिन, खास तौर पर उत्तराखंड में यह बहुतायत में पाई जाती है। यह एक प्रकार की घास होती है, जिसके संपर्क में आते ही शरीर में एक अजीब सी झनझनाहट होती है, तेज खुजली के साथ दर्द भी महसूस होता है। इसे लोग छूने से भी परहेज करते हैं। इसके झनझनाहट व दर्द पैदा करने वाले गुण के चलते इसे बिच्छू घास कहा जाता है। इस घास के बहुत से फायदे भी हैं।
बिच्छू घास का वैज्ञानिक नाम अर्टिका पर्वीफ्लोरा (Urtica Perviflora) है। अंग्रेजी में इसे scorpion grass कहा जाता है। इसकी पत्तियों पर छोटे-छोटे कांटे होते हैं, जो संपर्क में आते ही किसी बिच्छू के डंक की तरह शरीर में लगते हैं। खुली त्वचा से छू जायें तो लोगों की आह निकल आती है। इससे होने वाला दर्द काफी समय तक रहता है, लेकिन स्थायी नहीं होता। कहते हैं कि अगर कहीं यह घास लग जाये तो उस जगह को कंबल से रगड़ने में आराम मिलता है। पहाड़ों में इस घास का प्रयोग मोच आने पर किया जाता है। कई प्रकार की आयुर्वेदिक दवाओं में इसका इस्तेमाल होता है। कुछ लोग इसकी सब्जी भी बड़े चाव से खाते हैं। अब दुनिया भर के वैज्ञानिक इसको लेकर कई प्रकार के अविष्कार करने में जुटे हैं। अतएव कहा जा सकता है कि बिच्छू घास बहुत फायदेमंद है।