कुपित हैं इंद्रदेव, मायूस किसान : बारिश न होने से चौपट हुई दलहनी फसलें, किसानों ने लगाई क्षेत्र को सूखाग्रस्त घोषित कर कृषि ऋण माफ करने की गुहार !
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सुयालबाड़ी से अनूप सिंह जीना की रिपोर्ट
आंखिरकार वही हुआ, जिसका अंदेशा पूर्व से ही था। इस मानसून बारिश बहुत कम होने से क्षेत्र के दर्जनों गांवों में दलहनी फसलें पूरी तरह सूख चुकी हैं और किसानों के चेहरे मुरझा गये हैं। हालात इतने बदलत हैं कि बारिश के अभाव में फसल चौपट होने से किसानों के लिए अपने परिवार का भरण—पोषण भी मुश्किल हो गया है। यदि यही हालात रहे तो गर्मियों का सीजन आने तक किसान परिवार भुखमरी का शिकार हो जायेंगे।
उल्लेखनीय है कि पहाड़ों में सिंचाई के अन्य साधन नही होने से अधिकांश खेत—खलिहान वर्षाजल पर ही निर्भर हैं। इस साल अल्मोड़ा व नैनीताल जनपद के कुछ इलाकों में औसत से बहुत कम बारिश हुई है, जिसमें नैनीताल जनपद का सुयालबाड़ी व आस—पास का क्षेत्र भी शामिल है। ज्ञातव्य हो कि देश में बारिश का मौसम एक जून से शुरू होकर तक 30 सितंबर तक जारी रहता है। इस साल यह मानसून पूरे देश में 26 जून को पहुंचा था। हालांकि उत्तराखंड में मानसून निर्धारित से काफी दिन बाद आया और कई इलाकों में बहुत कम बारिश हुई। साथ ही तय समय से काफी पहले मानसून की वापसी भी हो गई। इसका सीधा असर बुवाई के समय किसानों के खेतों में पड़ा था। अब सर्दियों की शुरूआत के बावजूद काफी लंबे समय से बारिश नही होने का असर दिखाई दे रहा है। एक तो इंद्र देवता के कोप की वजह से एक बंदू बारिश नही हो रही ऊपर से जबरदस्त धूप भी पड़ रही है। जिस कारण किसानों के खेतों में तैयार दलहनी फसलें सूख चुकी हैं। जंगली सुंअर व बंदरों से जैसे—तैसे किसान अपनी फसलों को बचाते थे, लेकिन सूखे की मार का उनके पास कोई विकल्प ही नही है। बता दें कि यहां मौना, चापड़, क्वारब, द्यारी, समेल, चोपड़ा, सिरसा, मनरसा, सुयालबाड़ी में बारिश न होने से दलहनी फसलों को सर्वाधिक नुकसान पहुंचा है। गोहत, भट्ट व कई अन्य दालों की पैदावार इस बार शून्य के बराबर ही हुई है। जिसके चलते किसान बहुत मायूस हैं। स्थानीय काश्तकार कृष्ण कुमार ने कहा कि हालत इतनी बदतर हो चुकी है कि कई परिवार तो भुखमरी की कगार में आ गये हैं। कोरोना काल में एक तो कोई रोजगार नही मिल पा रहा है। बहुत से युवाओं का रोजगार छिन चुका है और वह गांव वापस आकर खेती—बाड़ी में जुटे हैं। सूखे की वजह से इनका बहुत बड़ा नुकसान हुआ है। किसानों के सामने अपने परिवार का पालन—पोषण करने की समस्या उत्पन्न हो रही है। क्षेत्र में बारिश न होने से प्रभावित तमाम किसानों का कहना है कि इन हालातों में सरकार को चाहिए कि इन क्षेत्रों को सूखाग्रस्त घोषित कर किसानों के कृषि ऋण माफ करवाये, जिससे किसानों को कुछ राहत मिल सके।
दलहनी फसलों की जून माह में बुवाई की जाती है और यह फसल वर्षा आधारित खेती के तहत ही उगाई जाती है। वर्तमान में इसकी कटाई की तैयारी चल रही है। फसल परिपक्व होने पर अधिकांश पत्तियां सूख कर गिरने लगती हैं। इस समय फसल की कटाई कर लेनी चाहिए, अन्यथा देरी से कटाई की स्थिति में दानों के चटक कर जमीन में झड़ने का डर रहता है। कटाई के बाद फसल को दो—तीन दिन धूप में फैला कर रखें। इसके बाद मढ़ाई कर दानों को अलग करें एवं धूप में अच्छी तरह सुखाकर भंडारित करें।
— डॉ. राजेश कुमार (कृषि वैज्ञानिक, कृषि विज्ञान केंद्र कोसी, मटेला)