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लालकुआं न्यूज़ : मार्क्सवाद ही मानव मुक्ति का वास्तविक दर्शन है : कैलाश पाण्डेय


लालकुआं। “दर्शन क्या है? और मार्क्सवादी दर्शन की बुनियादी प्रस्थापनाएँ” विषय पर भाकपा (माले) द्वारा अध्ययन चक्र पार्टी ऑफिस, कार रोड, बिन्दुखत्ता में शारीरिक दूरी के मानकों का पालन करते हुए आयोजित किया गया। अध्ययन चक्र के मुख्य शिक्षक के तौर पर अपने संबोधन में माले के नैनीताल जिला सचिव डॉ कैलाश पाण्डेय ने दर्शन की जरूरत और मार्क्सवादी दर्शन की अंतर्वस्तु द्वंदात्मक भौतिकवाद, ऐतिहासिक भौतिकवाद, वर्ग संघर्ष, राज्य और क्रांति, उत्पादन संबंध, पूँजीवादी समाज के अंतर्विरोध की बुनियादी प्रस्थापनाओं पर विस्तृत रूप से अपनी बात रखी।

उन्होंने कहा कि, “पूँजीवाद के आविर्भाव के साथ ही दुनिया में पहली बार पूंजीपति और मजदूर वर्ग जैसा विभाजन सामने आया. एक तरफ पूंजीपति हैं जिनके पास पूँजी का नियंत्रण है और दूसरी तरफ वे लोग जो अपना मानसिक और शारीरिक श्रम पूंजीपतियों को बेचकर बदले में मज़दूरी पाते हैं, जो उनके भरण-पोषण का इकलौता सहारा है। ज़ाहिर है दोनों के हित एक-दूसरे से अलग होते हैं. मार्क्स ने पूँजीवाद के विश्लेषण के लिए‘द्वंद्ववाद’का उपयोग किया और इसे भौतिकवाद से जोड़कर इसे एक सकर्मक तथा क्रांतिकारी दर्शन‘द्वंद्वात्मक भौतिकवाद’में तब्दील कर दिया।”

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उन्होंने कहा कि, “मार्क्स ने साफ किया कि‘अब तक के दार्शनिकों ने विभिन्न तरीकों से विश्व की केवल व्याख्या की है, सवाल दुनिया को बदलने का है।’और मार्क्स ने अपने दर्शन के सहारे न केवल इतिहास के अब तक के विकास की ‘वर्ग संघर्षों’ के रूप में व्याख्या की। बल्कि भविष्य के क्रांतिकारी परिवर्तनों के लिए मार्ग भी प्रशस्त किया, जिसमें मनुष्य अपनी परिस्थितियों में आमूलचूल परिवर्तन की माँग और उसका प्रयास करेगा जिससे मनुष्य की भौतिक परिस्थितियाँ बदल सकें और उसका समग्र विकास हो सके। मनुष्य अपनी भौतिक परिस्थितियों का उत्पाद है और इन्हें बदलने की प्रक्रिया में वह खुद भी बदल जाता है। तब वह पूँजीवाद, साम्प्रदायिकता, जातिवाद जैसे शोषक रूपों के ख़ात्मे के लिए काम करता है।”

इस अध्ययन चक्र में ललित मटियाली, भुवन जोशी, विमला रौथाण, गोविंद जीना, पुष्कर दुबड़िया, नैन सिंह कोरंगा, किशन बघरी, राजेन्द्र शाह, कमल जोशी, हरीश भंडारी, चंदन राम, गोपाल गड़िया, ललित जोशी, भास्कर कापड़ी, विनोद कुमार, शिवा, अशोक कुमार आदि मुख्य रूप से मौजूद रहे।

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