— आंदोलन की राह पर अडिग हैं आशाएं व योजना कर्मी
सीएनई रिपोर्टर, अल्मोड़ा
आज यहां चौघानपाटा स्थित गांधी पार्क पर एकत्रित होकर आशाओं व अन्य योजना कर्मियों ने धरना—प्रदर्शन किया। इसके जरिये तमाम समस्याएं उठाई और मांगों का ज्ञापन प्रधानमंत्री को भेजा गया। उन्होंने जोरदार नारेबाजी कर अपनी मांगें उठाई।
उत्तराखंड आशा हैल्थ वर्कर यूनियन, उत्तराखंड आशा स्वास्थ्य कार्यकर्ती यूनियन तथा भोजनमाता कामगार यूनियन के बैनर तेल आशाएं व भोजन माताएं धरना—प्रदर्शन में जुटीं। प्रदर्शन में अध्यक्ष ममता तिवारी, आनंदी मेहरा, चम्पा पांडे, भगवती आर्या, गीता जोशी, बीना पाठक, नीमा देवी, तुलसी देवी, गीता कनवाल, सरस्वती अधिकारी, ममता भट्ट, ममता तिवारी, पूजा बगडवाल, कमला रावत, तारा चौहान, जानकी कांडपाल, भगवती आर्या समेत कई आशा वर्कर्स तथा शोभा जोशी, नरगिस खान, आशा कनवाल, कमला खोलिया, प्रेमा जड़ौत, गंगा चौहान, पार्वती बोरा, आनंदी गुप्ता, हेमा अधिकारी आदि भोजन माताएं शामिल हुई।
प्रमुखता से उठी ये मांगें
— पूरे देश में आशाओं समेत सभी स्कीम वर्कर्स के लिए एक समान वेतन नीति लागू की जाय।
— उत्तराखण्ड सरकार को निर्देशित किया जाय कि आशाओं से किए गए मानदेय के वायदे का शासनादेश जारी किया जाय।
— सेवानिवृत्ति के समय आशा समेत सभी स्कीम वर्कर्स के लिए अनिवार्य पेंशन योजना लागू की जाय।
— स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए जीडीपी का 6 प्रतिशत आवंटित की जाए और सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली और स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे को मजबूत किया जाए।
— आशा समेत सभी फ्रंटलाइन वर्कर्स को 50 लाख रुपये का बीमा कवर दिया जाए। साथ ही मृत्यु होने की दशा में वर्कर के आश्रितों को पेंशन/ नौकरी दी जाए।
— कोविड-19 ड्यूटी में लगे आशाओं समेत सभी स्कीम वर्कर्स के लिए प्रति माह 10,000 रुपये का अतिरिक्त कोविड जोखिम भत्ता भुगतान किया जाए।
— ड्यूटी पर रहते हुए संक्रमित हुए सभी लोगों के लिए न्यूनतम दस लाख रुपये का मुआवजा दिया जाए।
— केंद्र प्रायोजित योजनाओं जैसे एनएचएम, आईसीडीएस, मिड डे मील स्कीम के बजट आवंटन में बढ़ोतरी की जाए।
— 45वें व 46वें भारतीय श्रम सम्मेलन की सिफारिशों के अनुसार स्कीम वर्कर्स को मजदूर के रूप में मान्यता दी जाए और सभी स्कीम वर्कर्स को 21000 रूपये प्रतिमाह न्यूनतम वेतन दिया जाए।
— कोरोना अवधि तक सभी को 10 किलो राशन प्रति व्यक्ति प्रति माह दिया जाए।
— स्वास्थ्य, एनएचएम, पोषण और शिक्षा जैसी बुनियादी सेवाओं के निजीकरण के प्रस्तावों को वापस लिया जाए।
— वित्त जुटाने के लिए ‘सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट’ पर रोक लगाई जाए और स्कीम वर्करों के बजट में वृद्धि की जाय।