बागेश्वर: सांस्कृतिक कार्यक्रमों ने सातूं—आठूं पर्व पर लगाए चार चांद

✍️ बोहाला में मूर्तियों के विसर्जन के साथ मेला संपन्न ✍️ औलानी गांव में झोड़ा-चाचरी की प्रस्तुति ने मचाई धूम सीएनई रिपोर्टर, बागेश्वर: जिले में…

सांस्कृतिक कार्यक्रमों ने सातूं—आठूं पर्व पर लगाए चार चांद
















✍️ बोहाला में मूर्तियों के विसर्जन के साथ मेला संपन्न
✍️ औलानी गांव में झोड़ा-चाचरी की प्रस्तुति ने मचाई धूम

सीएनई रिपोर्टर, बागेश्वर: जिले में सातूं-आठूं का पर्व गौरा महेश की मूर्तियों के विसर्जन के साथ संपन्न हो गया है। इस दौरान महिलाओं ने गौरा के गीतों का गायन किया। क्षेत्र तथा समाज की सुख संमृद्धि की कामना की। बोहाला में आयोजित महोत्सव में सांस्कृतिक कार्यक्रमों की धूम रही। बिरुड़ों से पूजा कर उसका प्रसाद बांटा गया। महिलाओं ने व्रत कर दुबड़ा धारण किया।

डोर व दुबड़ा का खास महत्व महिलाएं सप्तमी को व्रत कर डोर धारण करती हैं। इसमें गौरा महेश्वर की बनाई गई मूर्तियों को समक्ष पूरे शृंगार करने के बाद सामूहिक तौर पर पूजा करती हैं। यह अखंड सौभाग्य के लिए की जाने वाली परंपरागत पूजा है। अष्टमी को दुबड़ा का व्रत होता है। पूजा अर्चना के बाद महिलाएं गले में धारण करती हैं। बोहाला में सातूं आठू को लेकर तीन दिन का भव्य मेला जारी है। सोमवार को दूसरे दिन हरजयू मंदिर में महिलाओं ने गौरा महेश की पूजा की। इसके बाद डोर धारण किया। यहां गौरा और महेश की अनाज से मूर्ति बनाई गई। उन मूर्तियों को पहाड़ी लोक गीतों (गवार ) को गाकर नचाया गया। इसके बाद उसे विसर्जन किया गया। दर्जा राज्यमंत्री शिव सिंह बिष्ट ने कहा कि यह मेला पारंपरिक मेला है। इस मेले में हमें हमारी संस्कृति देखने को मिलती है। इस मौके पर मंदिर समिति के अध्यक्ष नरेंद्र रावत, भाजपा जिलाध्यक्ष इंद्र सिंह फर्स्वाण, जिला पंचायत सदस्य चंदन रावत, मोहन सिंह, प्रमोद कुमार, मनीष कुमार, गोकुल रावत, दयाल कांडपाल आदि मौजूद रहे।
औलानी में झोड़ा-चाचरी की धूम

कांडा। सातूं की शाम कमस्यारघाटी के औलानी गांव में हुड़के की थाप पर झोड़े, चांचरी की धूम रही। औलानी, ठांगा, नरगोली, भंडारीगांव, सिमायल, देवलेत, तुषरेड़ा के महिलाओं व पुरूषों ने रातभर चांचरी गायन किया। यह परंपरा वर्षों से चली आ रही हैं। चांचरी विधा के जानकार लोककलाकार केदार सिंह भौर्याल बताते हैं कि ये हमारी लोकसंस्कृति है। इसे पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाने का काम हम सभी के द्वारा संयुक्त रूप से होना चाहिए। पलायन का दंश झेल रहा कमस्यार में वर्तमान में विलुप्ति की कगार पर है। चांचरी पहले हर गांव में सातूं आठू पर्व पर होता था। गायन अब केवल औलानी गांव इस परम्परा को जिंदा रखे हैं। उधर दुग-नाकुरी तहसील के किड़ई गांव के हरु मंदिर में झोड़ा चाचरी का आयोजन किया गया। हुड़के की थाप पर महिलाएं व पुरुष थिरकते रहे।

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