सीएनई रिपोर्टर
अफगानिस्तान से एक बहुत बड़ी ख़बर आ रही है। बताया जा रहा है कि तालिबान आतंकी अब राजधानी काबुल तक पहुंच चुके हैं। बहुत जल्द बगैर लड़े अफगान सरकार सत्ता परिवर्तन को तैयार हो गई है। वहीं तालिबान ने भारत से किसी किस्म की दुश्मनी नही रखने के साथ ही चेतावनी दी है कि यदि उसने अपने सैनिकों को उनके खिलाफ उतारा तो उसके परिणाम अच्छे नही रहेंगे।
अब बहुत जल्द एक बार फिर संपूर्ण अफगानिस्तान में कट्टर और क्रूर तालिबानी शासन की पुर्नस्थापना के आसार दिख रहे हैं। एक विश्वस्त सामाचार ऐजेंसी के मुताबिक अफगान सरकार तालिबान आतंकियों के आगे घुटने टेकने जा रही है। यहां तमाम सैन्य शक्ति और एयरफोर्स होने के बावजूद तालिबानियों के टकराने का साहस सेना नही कर पा रही है। अतएव भयंकर खून—खराबे से बचने के लिए यह रास्ता अपनाये जाने की तैयारी है।
काबूल की न्यूज एजेंसी AP क अनुसार तीन अफगान अधिकारियों ने इस बात की पुष्टि की है कि तालिबान के आतंकी काबुल की सीमाओं में दाखिल हो गए हैं। तालिबान ने सभी बॉर्डर क्रासिंग को कब्जे में ले लिया है। अब तालिबान ने सत्ता परिवर्तन की मांग की है, जिस पर अफगानिस्तान के कार्यवाहक गृह मंत्री अब्दुल सत्तार मिर्जकवाल ने भी मुहर लगा दी है। माना जा रहा है कि यदि शांतिपूर्ण ढंग से सत्ता परिवर्तन हुआ तो तालिबान काबुल पर हमला नही करेगी।’ तालिबान के प्रतिनिधि अफगान राष्ट्रपति भवन में वार्ता के लिए पहुंच चुके हैं।
ज्ञात रहे कि तालिबान ने पहले ही साफ कर दिया था कि वह ताकत के बल पर नही, बल्कि शांतिपूर्ण ढंग से काबुल पर कब्जा करना चाहता है। इसक बावजूद अब भी कहीं संघर्ष विराम नही हुआ है। तालिबान ने कहा है कि वे आम लोगों या सेना के खिलाफ कोई बदले की कार्रवाई या हमला नहीं करेंगे, इसका ‘वादा’ देते हैं। कहा है कि तालिबान सभी को ‘माफ’ कर रहा है। तालिबान ने यह भी चेतावनी दी है कि कोई भी देश छोड़ने की कोशिश न करे और घर पर ही रहे।
ज्ञात रहे कि इससे पूर्व शनिवार को तालिबान ने जलालाबाद पर भी कब्जा कर चुका है। अब तक यह समझा जा रहा था कि और मीडिया रिपोर्ट में भी दिखाया जा रहा था कि काबुल तालिबानी आतंकियों से मुक्त है।
इधर तालिबान के प्रवक्ता मोहम्मद सुहेल शाहीन ने न्यूज एजेंसी एएनआई से वार्ता में कहा है कि अगर भारत सेना के साथ अफगानिस्तान आता है और यहां उनकी मौजूदगी रहती है, तो यह भारत के लिए अच्छा नहीं होगा। शाहीन ने कहा, ‘उन्होंने अफगानिस्तान में सेना और दूसरे देशों की मौजूदगी के नतीजे देखे हैं, तो उनके लिए यह खुली किताब की तरह हैं।’