— आनंद नेगी —
रानीखेत। जम्मू कश्मीर के बाद देश का दूसरा देवी शक्तिपीठ मंदिर कुमाऊं के द्वाराहाट स्थित दूनागिरी में है। जहां देवी वैष्णवी विराजमान है, जिन्हें स्थानीय लोग दूनागिरी या द्रोणागिरी मां के रूप में पूजते हैं। यह पवित्र और रमणीय स्थल जीवनदायिनी संजीवनी बूटी और द्रोणाचार्य जी की तपस्थली के साथ भी जुड़ा हुआ है।
कुमाऊं की द्रोणागिरी पर्वत श्रृंखला पर स्थित दूनागिरी अल्मोड़ा जिला मुख्यालय से 65 किलोमीटर, रानीखेत से 38 किलोमीटर और द्वाराहाट से 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। वैष्णवी शक्तिपीठ मंदिर लगभग 8000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। अंग्रेज इतिहासकार एटकिंसन के अनुसार इतिहास में जिस द्रोणागिरी का उल्लेख किया गया है वह दूनागिरी स्थित मंदिर ही है। पंडित बद्री दत्त पांडे ने कुमाऊं का इतिहास में इसकी पुष्टि की है। प्रोफेसर केडी बाजपेई भी इन तथ्यों से सहमत रहे हैं। जम्मू कश्मीर स्थित वैष्णो देवी के बाद दूनागिरी स्थित देवी वैष्णवी मंदिर को देश का दूसरा शक्तिपीठ माना गया है।
कहा जाता है कि लंका में रावण के साथ युद्ध के दौरान जब लक्ष्मण महाबली मेघनाद के शक्ति वाण से मूर्छित हो गये और उनकी जान बचाने के लिए सुषेन वैद्य को बुलाया गया, तो सुषेन ने तुरंत हिमालय से संजीवनी खोज कर लाने के निर्देश दिए। कहा जाता है कि हनुमान जी जिस द्रोणागिरी पर्वत से संजीवनी खोज कर लाए थे वह यही दूनागिरी था। कहावत यह भी है कि जब हिमालय स्थित है द्रोणागिरी को उठाकर हनुमान जी आकाश मार्ग से लंका को जा रहे थे तो उस समय भरत ने भ्रम वश उन्हें तीर मार दिया था और उसी समय पहाड़ का एक हिस्सा यहां गिर गया था, यही दूनागिरी पर्वत है। इसके साथ ही एक अन्य मान्यता भी प्रचलित है जिसके अनुसार द्वापर युग में पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य ने यहां तपस्या की थी, जिससे इस स्थान का नाम द्रोणागिरी पड़ा।
कालांतर में लोग इसे दूनागिरी नाम से पुकारने लगे। बहरहाल दूनागिरी, पांडव खोली और भटकोट पर्वत श्रृंखलाएं अत्यधिक ऊंची और रमणीक होने के कारण बरबस ही लोगों का मन मोह लेती हैं। यहां स्थित गुफाओं और अन्य रहस्यमय, पुरातात्विक वस्तुओं के कारण पूरे क्षेत्र का व्यापक महत्व है। कई आकर्षक और रोमांचक कथाएं उनके साथ जुड़ी हैं। कुछ धरोहरों के वैज्ञानिक प्रमाण भी मौजूद है। दूनागिरी शक्तिपीठ तक पहुंचने के लिए द्वाराहाट से मंगली खान तक वाहन सेवाएं उपलब्ध रहती है। यहां से तकरीबन डेढ़ किलोमीटर के सीधे खड़े मार्ग से पदयात्रा करनी पड़ती है। पूरे मार्ग पर लगभग 500 सीढ़ियां हैं जिन्हें लंबी छत से आच्छादित किया गया है, जिससे इस पैदल यात्रा के दौरान गर्मी, ठंड और बारिश का असर नहीं होता। लगभग सभी तीज त्योहारों और पवित्र अवसरों पर यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। खासकर देवी की सभी नवरात्रों पर यहां लोग उमड़ पड़ते हैं।
कुमाऊं और गढ़वाल के अधिकतर हिस्सों के साथ ही मैदानी क्षेत्रों से भी श्रद्धालुओं का आवागमन लगा रहता है। अश्विन नवरात्रों पर और दीपावली के मौके पर रानीखेत आने वाले बंगाली पर्यटक दूनागिरी जाते हैं। श्रद्धालुओं का मानना है कि सच्चे दिल से मां वैष्णवी देवी के दरबार में जाने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। प्रतिवर्ष चैत्राष्टमी और अश्विन नवरात्र की अष्टमी को यहां भव्य मेला लगता है। दूनागिरी मंदिर समिति द्वारा यहां सभी प्रकार की व्यवस्थाएं की गई है। श्रद्धालुओं की सुविधा का पूरा ध्यान रखा जाता है। जन सहयोग से हर रोज भंडारा होता है। द्रोणागिरी पर्वत और इसके आसपास की चोटियों से हिम श्रृंखलाओं के मनोरम दृश्य दिखाई देते हैं आसपास की घाटियों का मनोरम दृश्य भी यहां से नजर आता है। कई पौराणिक ग्रंथों में द्रोणागिरि का उल्लेख है। दिल्ली स्थित रामजस कॉलेज के अवकाश प्राप्त प्रोफेसर तथा द्वाराहाट – भिकियासैंण के मध्य स्थित जोयों गांव निवासी डॉ मोहन चंद्र तिवारी ने शोध के बाद दूनागिरी के ऐतिहासिक, पौराणिक महत्व पर पुस्तकें लिखी हैं।