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ALMORA NEWS: शताब्दी वर्ष पर संगोष्ठीः वक्ता बोले-कुली बेगार आंदोलन ने सामाजिक कुरीतियों पर की गहरी चोट और कुमाऊं का नाम विश्वपटल पर रखा

सीएनई रिपोर्टर, अल्मोड़ा
उत्तराखंड के प्रमुख एवं चर्चित आंदोलनों में शुमार कुली बेगार आंदोलन के शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में यहां एसएसजे परिसर अल्मोड़ा के इतिहास विभाग में संगोष्ठी का आयोजन हुआ। जिसमें वक्ताओं ने कुली बेगार आंदोलन पर विस्तार से जिक्र करते हुए कहा कि इसने कुमाऊं का नाम विश्वपटल पर रखा और सामाजिक कुरीतियों पर गहरी चोट की।
मुख्य अतिथि सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. नरेंद्र सिंह भंडारी ने कहा कि कुली बेगार आंदोलन एक रक्तहीन क्रांति के रूप में जाना गया। इस सामाजिक आंदोलन ने कुरीतियों पर कड़ा प्रहार किया है। प्रो. भंडारी नेे कहा कि सन् 1900 के दौर के आंदोलनों ने सामाजिक हितों को सर्वोपरि रखा और समस्याओं को दूर करने के एकजुट प्रयास किए। ऐसे सामाजिक आंदोलनों में कुली बेगार आंदोलन प्रमुख है। उन्होंने कहा कि उस दौर के अधिकतर आंदोलन सफल रहे, जिसके पीछे वजह थी कि लोग आंदोलनों में तन-मन से समर्पित रहे। कुलपति ने ऐसे आंदोलनों और उनसे जुड़े लोगों पर शोध की जरूरत है और कुली बेगार आंदोलन से सीख लेने की जरूरत है।
मुख्य वक्ता साहित्यकार सुशील जोशी ने स्व. बद्री दत्त पांडे के संबंध में बताया कि वे नामी समाजसेवी, पत्रकार रहे। उनके सहयोगियों का उल्लेख भी किया और कहा कि स्व. बद्री दत्त पांडे ने अल्मोड़ा अखबार के माध्यम से निर्भीकतापूर्वक राष्ट्रीयता की अलख जगाने वाले क्रांतिकारी लेख लिखे, हालांकि ब्रिटिश दबाव में बाद में यह अखबार बंद हो गया। समाज की नायक व कुली बेगार जैसी कुप्रथाओं को बंद करवाया। उन्होंने कहा कि स्व. बद्री दत्त पांडे के नेतृत्व में कुली बेगार के सभी रजिस्टर नदी में प्रवाहित कर दिए गए और ब्रिटिश सरकार के अधिकारियों को चुनौती देकर इस प्रथा का अंत किया। स्व. बद्री दत्त पांडे स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े रहे। उन्होंने जेल यात्नाएं सही। यहां तक कि उन्हें काल कोठरी में बंद कर दिया गया था। अतिथि के रूप में उपस्थित कर्नल रवि पांडे ने कहा कि विसपा अभियान भी बहुचर्चित रहा है। उत्तरायणी मेले के मौके पर रजिस्टर बहाया जाना भी कोई छोटी घटना नहीं थी।
इससे पहले मुख्य अतिथि व अन्य अतिथियों ने संगोष्ठी का विधिवत शुभारंभ किया और प्रो. अनिल जोशी ने गोष्ठी की रूपरेखा रखी। आंदोलन की पृष्ठभूमि प्रस्तुत करते हुए उन्होंने ऐतिहासिक जानकारियां दीं। इतिहास, संस्कृति व पुरातत्व विभाग के विभागाध्यक्ष एवं कार्यक्रम संयोजक प्रो. वीडीएस नेगी ने संचालन करते हुए कहा कि कुली बेगार आंदोलन ने कुमाऊं का नाम विश्वपटल पर रखा। कुमाऊं क्षेत्र के आंदोलनकारियों ने राष्ट्रीय पटल पर प्रतिनिधित्व किया। तभी यहां के मेले में भी उनका प्रभाव साफ झलकता है। उन्होंने उत्तरायणी मेले को इसका जीता-जागता उदाहरण बताया। उन्होंने कहा कि इस आंदोलन ने समाज को राजनीतिक दृष्टि से भी जागृत किया।
संगोष्ठी में अपने विचार रखते हुए प्रो. एसए हामिद ने कहा कि कुली बेगार आंदोलन नॉन वायलेंट मूवमेंट रहा है। उन्होंने कहा कि हम कई कुरीतियों से घिरे हुए हैं, भले ही आज हम बंधन मुक्त भी हो रहे हैं। डा. चंद्र प्रकाश फुलोरिया ने कहा कि कुली बेगार आंदोलन कुमाऊं की पहचान है। डा. कपिलेश भोज ने कहा कि स्व. बद्री दत्त पांडे जननायक थे। उन्होंने कहा कि आज इतिहास को नहीं जानना बहुत खतरनाक है। एक समय में यहां के जननायकों ने बाहर से ज्ञान लेकर उस ज्ञान का समाज में संचार किया। इस मौके पर डा. वसुधा पंत, गिरीश मल्होत्रा, प्रेमा बिष्ट, किरण तिवारी आदि ने भी विचार रखे।
इस मौके पर इतिहास विभाग के संग्रहालय में कुमाऊं के इतिहास चर्चित और चंद शासन में कूटनीतिज्ञ रहे हरक देव जोशी द्वारा प्रयुक्त हथियारों को लोकार्पण अतिथियों ने किया। यह हथियार उनके वंशज मनोज कुमार जोशी ने दान स्वरूप संग्रहालय को प्रदान किए हैं। अतिथियों ने संग्रहालय में मौजूद ऐतिहासिक सामग्री का अवलोकन किया। संगोष्ठी में प्रो. केएन पांडेय, प्रो. एचबी कोठारी, परीक्षा नियंत्रक प्रो. सुशील जोशी, डा. नवीन भट्ट, डा. भाष्कर चैधरी, विवि के विशेष कार्याधिकारी डा. देवेंद्र सिंह बिष्ट, डा. भगवती प्रसाद पांडे, डा. ललित जोशी समेत शिक्षक, शोधार्थी और अन्य तमाम लोग शामिल हुए।

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